केले का पत्ता तथा प्रकृति के साथ मित्रता
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हम जानते हैं केले का पत्ता देखते ही हमे दक्षिण भारत का स्मरण हो जाता है, जहां आज भी केले के पत्ते पर भोजन करने की परम्परा है, बात भी सही है, वहां पर केले के वृक्ष बहुतायत में प्राप्त होते हैं l
मैं आज यह विषय आप सबके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ, की जब हम भोजन खाकर झूठे बर्तन होदी में रखते हैं उसे साफ़ करने वाले को कितना बुरा लगता होगा, और उसको साफ़ करने में कितना सारा सर्फ, डिटर्जेंट और पानी का दुरूपयोग किया जाता है l
यहाँ पर एक बात विचारणीय है कि पूरी पृथ्वी के जल का केवल 1% ही मनुष्यों के पीने योग्य है, क्या हम इस अमूल्य प्राकृतिक पेय जल को नष्ट करना उचित है ?
सर्फ, डिटर्जेंट में खतरनाक केमिकल होते हैं, भले हम अच्छे से बर्तन धो भी लें, तो भी इस केमिकल की एक परत उस बर्तन पर अवश्य जमी रहती है, आगे जाकर उसमे भोजन रख कर आप जब खाते हैं, तब वो हमारे शरीर को हानि पहुंचाती है l
दूसरी बात यह है कि हम अपना झूठा किसी और से धुलवा रहे हैं जो कि अच्छी बात नही है, आजकल घरों में यह कार्य कामवाली बाइयां करती हैं, आप अपना खर्च बढ़ा रहे हो, पानी भी व्यर्थ कर रहे हो, केमिकल खाकर शरीर भी खराब कर रहे हो और कामवाली बाई को दुःख भी दे रहे हो l
क्यों न हम सनातन संस्कृति के अनुसार प्राचीन परम्पराओं की और लौटें, केले के पत्ते पर खाएं या वत वृक्ष के पत्तों के पत्तल पर भोजन किया करें l
इसके लाभ :
1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है l
2. न पानी नष्ट होगा l
3. न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा l
4. न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे l
5. न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी l
6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी l
7. प्रदूषण भी घटेगा
8. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिटटी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है l
9. पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा l
10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा
सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा l जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है l
मैं आपको एक व्यक्तिगत अनुभव बता रहा हूँ, मैं सितम्बर माह में चेन्नई में गया था, वहां पर मैं 3 दिन रहा, उस कार्यक्रम में लगभग 5000 लोगों ने तीन दिनों तक तीनो समय भोजन किया, अर्थात 3 दिन में 45000 लोगों ने भोजन किया l
इन 45000 लोगों ने पत्तल पर भोजन किया, सोचिये 3 दिन में इन्होने कितना पानी बचाया बर्तन धोने में जो व्यर्थ होना था, 45000 बर्तन धोने में कितना पानी व्यर्थ होना था, जो की सारा बच गया l और चेन्नई की नदियों में कितना प्रदूषित पानी जमा होने से बचाया गया l
आप भारत की जनसंख्या के अनुसार स्वयम सोचिये एवं विश्लेषण कीजिए कि कितना पानी प्रतिदिन हम अपनी नदियों में इसी प्रकार दूषित करके छोड़ते हैं, कितने गैलन पानी हम प्रतिदिन अपनी नदियों को दूषित बनाने हेतु दुरूपयोग करते हैं l हमारी जनसंख्या द्वारा अपनाई जा रही इन लापरवाहियों का खामियाजा आगे जाकर हमारी पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा l
आप अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं... अपनी पीढ़ियों का ध्यान क्यों नहीं रखना चाहते ?
यदि हो सके तो बाजार से पत्तल खरीदें, जिनके पास जगह हो वो अपने घर में एक केले का पेड़ लगा लें, फिर सोचिये आप इस सृष्टि के प्रति कितना सहयोग कर सकते हैं l
प्रतिदिन उन झूठी पत्तलों को कूड़ेदान में डाल दें, नगर निगम की गाड़ी आकर ले जाएगी या फिर अपने घर के पीछे ही कोई गड्ढा करके उसमे गाड़ दें l
आप इन महत्वपूर्ण बातों को समझ कर यदि अमल में लायेंगे तो आप वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण एवंम मिटटी की उर्वरकता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान निभा सकते हैं l
ऐसे बहुत से बुद्धिजीवी हैं जो इनसे भी बेहतर लाभ गिनवा सकते हैं, उन सबका साधुवाद है, वे और भी लाभ गिनवाएं और समाधान उपलब्ध करवाएं तो बहुत अच्छा रहेगा, आसपास के समाज को जागरूक करवाने का प्रयास करें l
कई विषयों पर हमारा संकोच ही हमारे, पतन और विनाश का कारण बन रहा है, हम हानि भी न करें, और प्रकृति को भी हानि न पहुंचाएं l
आइये लौटें अपनी सनातन संस्कृति की और जिसका ध्येय केवल मानव और प्रकृति का विकास है l —
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हम जानते हैं केले का पत्ता देखते ही हमे दक्षिण भारत का स्मरण हो जाता है, जहां आज भी केले के पत्ते पर भोजन करने की परम्परा है, बात भी सही है, वहां पर केले के वृक्ष बहुतायत में प्राप्त होते हैं l
मैं आज यह विषय आप सबके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ, की जब हम भोजन खाकर झूठे बर्तन होदी में रखते हैं उसे साफ़ करने वाले को कितना बुरा लगता होगा, और उसको साफ़ करने में कितना सारा सर्फ, डिटर्जेंट और पानी का दुरूपयोग किया जाता है l
यहाँ पर एक बात विचारणीय है कि पूरी पृथ्वी के जल का केवल 1% ही मनुष्यों के पीने योग्य है, क्या हम इस अमूल्य प्राकृतिक पेय जल को नष्ट करना उचित है ?
सर्फ, डिटर्जेंट में खतरनाक केमिकल होते हैं, भले हम अच्छे से बर्तन धो भी लें, तो भी इस केमिकल की एक परत उस बर्तन पर अवश्य जमी रहती है, आगे जाकर उसमे भोजन रख कर आप जब खाते हैं, तब वो हमारे शरीर को हानि पहुंचाती है l
दूसरी बात यह है कि हम अपना झूठा किसी और से धुलवा रहे हैं जो कि अच्छी बात नही है, आजकल घरों में यह कार्य कामवाली बाइयां करती हैं, आप अपना खर्च बढ़ा रहे हो, पानी भी व्यर्थ कर रहे हो, केमिकल खाकर शरीर भी खराब कर रहे हो और कामवाली बाई को दुःख भी दे रहे हो l
क्यों न हम सनातन संस्कृति के अनुसार प्राचीन परम्पराओं की और लौटें, केले के पत्ते पर खाएं या वत वृक्ष के पत्तों के पत्तल पर भोजन किया करें l
इसके लाभ :
1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है l
2. न पानी नष्ट होगा l
3. न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा l
4. न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे l
5. न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी l
6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी l
7. प्रदूषण भी घटेगा
8. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिटटी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है l
9. पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा l
10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा
सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा l जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है l
मैं आपको एक व्यक्तिगत अनुभव बता रहा हूँ, मैं सितम्बर माह में चेन्नई में गया था, वहां पर मैं 3 दिन रहा, उस कार्यक्रम में लगभग 5000 लोगों ने तीन दिनों तक तीनो समय भोजन किया, अर्थात 3 दिन में 45000 लोगों ने भोजन किया l
इन 45000 लोगों ने पत्तल पर भोजन किया, सोचिये 3 दिन में इन्होने कितना पानी बचाया बर्तन धोने में जो व्यर्थ होना था, 45000 बर्तन धोने में कितना पानी व्यर्थ होना था, जो की सारा बच गया l और चेन्नई की नदियों में कितना प्रदूषित पानी जमा होने से बचाया गया l
आप भारत की जनसंख्या के अनुसार स्वयम सोचिये एवं विश्लेषण कीजिए कि कितना पानी प्रतिदिन हम अपनी नदियों में इसी प्रकार दूषित करके छोड़ते हैं, कितने गैलन पानी हम प्रतिदिन अपनी नदियों को दूषित बनाने हेतु दुरूपयोग करते हैं l हमारी जनसंख्या द्वारा अपनाई जा रही इन लापरवाहियों का खामियाजा आगे जाकर हमारी पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा l
आप अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं... अपनी पीढ़ियों का ध्यान क्यों नहीं रखना चाहते ?
यदि हो सके तो बाजार से पत्तल खरीदें, जिनके पास जगह हो वो अपने घर में एक केले का पेड़ लगा लें, फिर सोचिये आप इस सृष्टि के प्रति कितना सहयोग कर सकते हैं l
प्रतिदिन उन झूठी पत्तलों को कूड़ेदान में डाल दें, नगर निगम की गाड़ी आकर ले जाएगी या फिर अपने घर के पीछे ही कोई गड्ढा करके उसमे गाड़ दें l
आप इन महत्वपूर्ण बातों को समझ कर यदि अमल में लायेंगे तो आप वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण एवंम मिटटी की उर्वरकता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान निभा सकते हैं l
ऐसे बहुत से बुद्धिजीवी हैं जो इनसे भी बेहतर लाभ गिनवा सकते हैं, उन सबका साधुवाद है, वे और भी लाभ गिनवाएं और समाधान उपलब्ध करवाएं तो बहुत अच्छा रहेगा, आसपास के समाज को जागरूक करवाने का प्रयास करें l
कई विषयों पर हमारा संकोच ही हमारे, पतन और विनाश का कारण बन रहा है, हम हानि भी न करें, और प्रकृति को भी हानि न पहुंचाएं l
आइये लौटें अपनी सनातन संस्कृति की और जिसका ध्येय केवल मानव और प्रकृति का विकास है l —
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