Monday, April 8, 2019

ज्यूस थेरेपी - जिनसे कर सकते हैं आप इन बीमारियों का इलाज.

स्पेशल राज:
बड़ी बीमारियों का टेस्टी इलाज करें इस घरेलू थेरेपी से

ज्यूस को शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। इसीलिए प्राकृतिक चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता है और बीमारियों का इलाज किया जाता है।इसमें अलग-अलग फलों और सब्जियों का रस दिया जाता है। करेला जामुन या लौकी के ज्यूस में स्वाद नहीं होता है लेकिन इनका ज्यूस पीने के बहुत फ.ायदे हैं। आइए जानते हैं ज्यूस थेरेपी के कुछ स्पेशल राज जिनसे कर सकते हैं आप इन बीमारियों का इलाज....

खून की कमी- पालक के पत्तों का रस, मौसम्मी, अंगूर, सेब, टमाटर और गाजर का रस लिया जा सकता है।

भूख की कमी- नींबू, टमाटर का रस लें।

फ्लू और बुखार- मौसम्मी, गाजर, संतरे का रस लेना चाहिए।

एसीडिटी- मौसम्मी, संतरा, नींबू, अनानास का रस लें।

कृमि रोगों में- लहसुन और मूली का रस पेट के कीड़ों को मार देता हैं।

मुहांसों में- गाजर, तरबूज, और प्याज का रस लें।

पीलिया- गन्ने का रस, मौसम्मी और अंगूर का रस दिन में कई बार लेना चाहिए।

पथरी- खीरे का रस लें।

मधुमेह- इस रोग में गाजर, करेला, जामुन, टमाटर, पत्तागोभी एवं पालक का रस लिया जा सकता है।

अल्सर में- गाजर, अंगूर का रस ले सकते हैं। कच्चे नारियल का पानी भी अल्सर ठीक करता है।

मासिकधर्म की पीड़ा में- अनानास का रस लें।

बदहजमी -अपच में नींबू का रस, अनानास का रस लें, आराम मिलेगा।

नीम का तेल + कपूर = अला-उत(All Out) या मोर्टीन का बाप

मित्रो मच्छर भगाने के लिए आप अक्सर घर मे अलग अलग दवाएं इस्तेमाल करते हैं ! कोई तो liquid form मे होती हैं ! और कोई कोई coil के रूप मे और कोई छोटी टिकिया के रूप मे !! और all out ,good night, baygon,hit जैसे अलग-अलग नामो से बिकती है !


फ़ेसबुक की एक पोस्ट मैने कुछ दिन पहले पढ़ा था जिसमे की नीम के तेल (आयल) का दीपक जला कर घर मे रखने से रात को मच्छर नही आयेगे ओर मैने उससे तोड़ासा प्रयोग अलग किया।
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अला-उत(All Out) की केमिकल वाली रीफिल को खाली कर के उसमे नीम का तेल डाल दिया उसमे थोडा सा कपूर मिला दिया और फिर वैसे ही उसे किया जैसे अला-उत(All Out) या मोर्टीन को इस्तेमाल करते है। दोस्तो रात मे एक भी मच्छर नही आया तो दोस्तो जब एक प्रकर्तिक तरीके से मच्छरो से छुटकारा मिल जाए तो पेस्टीसाइड का जहर अपने जिंदगी मे क्यो घोल रहे हो।
 हम लोग पूरे 10 दिन टेस्ट करके ही ये सब मे सबुत के साथ लिख रहा हूँ

नीम का तेल + कपूर = अला-उत(All Out) या मोर्टीन का बाप

आपने पूरी पोस्ट पढ़ी उसके लिए धन्यवाद.................
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अमृत है बेलफ़ल::



गर्मी के मौसम में गर्मी से राहत देने वाले फलों में बेल का फल प्रकृति मां द्वारा दी गई किसी सौगात से कम नहीं है |

कहा गया है- 'रोगान बिलत्ति-भिनत्ति इति बिल्व ।' अर्थात् रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है ।

बेल सुनहरे पीले रंग का, कठोर छिलके वाला एक लाभदायक फल है। गर्मियों में इसका सेवन विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। शाण्डिल्य, श्रीफल, सदाफल आदि इसी के नाम हैं। इसके गीले गूदे को बिल्व कर्कटी तथा सूखे गूदे को बेलगिरी कहते हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग जहाँ इस फल के शरबत का सेवन कर गर्मी से राहत पा अपने आप को स्वस्थ्य बनाए रखते है वहीँ भक्तगण इस फल को अपने आराध्य भगवान शिव को अर्पित कर संतुष्ट होते है | औषधीय प्रयोगों के लिए बेल का गूदा, बेलगिरी पत्ते, जड़ एवं छाल का चूर्ण आदि प्रयोग किया जाता है। चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल का प्रयोग किया जाता है वहीं अधपके फल का प्रयोग मुरब्बा तो पके फल का प्रयोग शरबत बनाकर किया जाता है। 

बेल व बिल्व पत्र के नाम से जाने जाना वाला यह स्वास्थ्यवर्धक फल उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है। बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।

ये पेय गर्मियों में जहां आपको राहत देते हैं, वहीं इनका सेवन शरीर के लिए लाभप्रद भी है। बेल में शरीर को ताकतवर रखने के गुणकारी तत्व विद्यमान हैं। इसके सेवन से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि यह रोगों को दूर भगा कर नई स्फूर्ति प्रदान करता है। 
 
गर्मियों में लू लगने पर इस फल का शर्बत पीने से शीघ्र आराम मिलता है तथा तपते शरीर की गर्मी भी दूर होती है।

पुराने से पुराने आँव रोग से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन अधकच्चे बेलफल का सेवन करें।

पके बेल में चिपचिपापन होता है इसलिए यह डायरिया रोग में काफी लाभप्रद है। यह फल पाचक होने के साथ-साथ बलवर्द्धक भी है।

पके फल के सेवन से वात-कफ का शमन होता है।

आँख में दर्द होने पर बेल के पत्त्तों की लुगदी आँख पर बाँधने से काफी आराम मिलता है। कई मर्तबा गर्मियों में आँखें लाल-लाल हो जाती हैं तथा जलने लगती हैं। ऐसी स्थिति में बेल के पत्तों का रस एक-एक बूँद आँख में डालना चाहिए। लाली व जलन शीघ्र दूर हो जाएगी।

बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इस फल के पत्तों का अर्क निकालकर पिलाना चाहिए।

बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार रोग में राहत मिलती है।

इसके पके फल को शहद व मिश्री के साथ चाटने से शरीर के खून का रंग साफ होता है, खून में भी वृद्धि होती है।

बेल के गूदे को खांड के साथ खाने से संग्रहणी रोग में राहत मिलती है।

पके बेल का शर्बत पीने से पेट साफ रहता है।

बेल का मुरब्बा शरीर की शक्ति बढ़ाता है तथा सभी उदर विकारों से छुटकारा भी दिलाता है।

गर्मियों में गर्भवती स्त्रियों का जी मिचलाने लगे तो बेल और सौंठ का काढ़ा दो चम्मच पिलाना चाहिए।

पके बेल के गूदे में काली मिर्च, सेंधा नमक मिलाकर खाने से आवाज भी सुरीली होती है।

छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक चम्मच पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं।

दूध पीने के नियम



दूध पीने के नियम
सुबह के समय दूध कभी ना पीये+ जर्सी गाय के दूध कभी भी ना पीये

बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अन
ुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ; जबकि छाछ की ठंडी .
- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शकर के ; हो सके तो गाय का घी १- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है वो हम शकर डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .
- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं .
- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के लड्डू खिलाइए
- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए . खीर के साथ नामकी पदार्थ ना खाए .
- अधजमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .
- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .
- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .
पूरा पोस्ट नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करे !
http://www.youtube.com/watch?v=Nc6ws1ZA5s0

हजारो करोड़ रुपए की लूट हर साल विदेशी कंपनियो द्वारा ये contraceptive बेच कर की जाती हैं !

मित्रो कई विदेशी कंपनियाँ हमारे देश की माताओ ,बहनो को गर्भ निरोधक उपाय बेचती हैं !(Contraceptive)
कुछ तो गोलियों (pills) के रूप मे बेचे जाते हैं ! और इसके इलवा इनके अलग अलग नाम हैं !
जैसे norplant, depo provera, I pill है एक E pill है ! ऐसे करके कुछ और अलग अलग नामो से हमारे देश की माताओ ,बहनो को ये Contraceptive बेचे जाते है !

और आपको ये जानकर बहुत दुख होगा जिन देशो की ये कंपनियाँ है ! ये सब वो अपने देश की माताओं बहनो को नहीं बेचती है ! लेकिन भारत मे लाकर बेच रही हैं !

जैसे ये depo provera नाम की तकनीक इनहोने विकसित की है गर्भ निरोधन के लिए !! ये अमेरिका की एक कंपनी ने विकसित किया है कंपनी का नाम है आबजोन ! इस कंपनी को अमेरिका सरकार ने ban किया हुआ है की ये depo provera नाम की तकनीक को अमेरिका मे नहीं बेच सकती ! तो कंपनी ने वहाँ नहीं बेचा ! और अब इसका उत्पादन कर भारत ले आए और भारत सरकार से इनहोने agreement कर लिया और अब ये धड़ले ले भारत मे बेच रहे हैं !

ये injection के रूप मे भारत की माताओ बहनो को दिया जा रहा है और भारत के बड़े बड़े अस्पतालो के डाक्टर इस injection को माताओं बहनो को लगवा रहें है ! परिणाम क्या हो रहा है ! ये माताओ ,बहनो का जो महवारी का चक्र है इसको पूरा बिगाड़ देता है और उनके अंत उनके uterus मे cancer कर देता है ! और माताओ बहनो की मौत हो जाती है !

कई बार उन माताओं ,बहनो को पता ही नहीं चलता की वो किसी डाक्टर के पास गए थे और डाक्टर ने उनको बताया नहीं और Depoprovera का Injection लगा दिया ! जिससे उनको Cancer हो गया और उनकी मौत हो गई !! पता नहीं लाखो माताओ ,बहनो को ये लगा दिया गया और उनकी ये हालत हो गई!

इसी तरह इनहोने एक NET EN नाम की गर्भ निरोधन के लिए तकनीकी लायी है ! Steroids के रूप मे ये माताओ बहनो को दे दिया जाता है या कभी injection के रूप मे भी दिया जाता है ! इससे उनको गर्भपात हो जाता है ! और उनके जो पीयूष ग्रंथी के हार्मोन्स है उनमे असंतुलन आ जाता है !! और वो बहुत परेशान होती है जिनको ये NET EN दिया जाता है !

इसकी तरह से RU 496 नाम की एक तकनीक उन्होने ने आई है फिर रूसल नाम की एक है ! फिर एक यू क ले फ नाम की एक है फिर एक Norplant है ! फिर एक प्रजनन टीका उन्होने बनाया है सभी हमारी माताओ ,बहनो के लिए तकलीफ का कारण बनती है फिर उनमे ये बहुत बड़ी तकलीफ ये आती है ये जितने भी तरह गर्भ निरोधक उपाय माताओ बहनो को दिये जाते हैं ! उससे uterus की मांस पेशिया एक दम ढीली पड़ जाती है ! और अक्सर मासिक चक्र के दौरान कई मताए बहने बिहोश हो जाती है ! लेकिन उनको ये मालूम नहीं होता कि उनको ये contraceptive दिया गया जिसके कारण से ये हुआ है ! और इस तरह हजारो करोड़ रुपए की लूट हर साल विदेशी कंपनियो द्वारा ये contraceptive बेच कर की जाती हैं !
आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
मित्रो पूरी post नहीं पढ़ सकते यहाँ click करे !
https://www.youtube.com/watch?v=gm8zznEVVQw

दही खाने के फायदे

दही खाने के फायदे 


1. दही के सेवन से हार्ट में होने वाले कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव किया जा सकता है। डॉक्टरों का मानना है कि दही के नियमित सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है।

2. चेहरे पर दही लगाने से त्वचा मुलायम होने के साथ उसमें निखार भी आता है। अगर दही से चेहरे की मसाज की जाए तो यह ब्लीच के जैसा काम करता है। इसका प्रयोग बालों में कंडीशनर के तौर पर भी किया जाता है।

3. गर्मियों में त्वचा पर सनबर्न हो जाने पर दही मलने से राहत मिलती है।

4. दही दूध के मुकाबले सौ गुना बेहतर है, क्‍योंकि इसमें कैल्शियम के चलते हड्डियां और दांत मजबूत होते हैं। यह ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारी से लड़ने में भी मददगार है।

5. हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों को रोजाना दही का सेवन करना चाहिए।


6. दही में अजवायन डालकर खाने से कब्ज दूर होता है।
7. दही में बेसन मिलाकर लगाने से त्वचा में निखार आता है। मुंहासे दूर होते हैं।

8. दही को आटे के चोकर में मिलाकर लगाने से त्वचा को पोषण मिलता है और त्वचा कातिमय बनती है। - सिर में रूसी होने पर भी दही फायदेमंद होता है। ये रूसी को हटाकर बालों को मुलायम बनाता है।

केले का पत्ता तथा प्रकृति के साथ मित्रता


केले का पत्ता तथा प्रकृति के साथ मित्रता
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हम जानते हैं केले का पत्ता देखते ही हमे दक्षिण भारत का स्मरण हो जाता है, जहां आज भी केले के पत्ते पर भोजन करने की परम्परा है, बात भी सही है, वहां पर केले के वृक्ष बहुतायत में प्राप्त होते हैं l
मैं आज यह विषय आप सबके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ, की जब हम भोजन खाकर झूठे बर्तन होदी में रखते हैं उसे साफ़ करने वाले को कितना बुरा लगता होगा, और उसको साफ़ करने में कितना सारा सर्फ, डिटर्जेंट और पानी का दुरूपयोग किया जाता है l

यहाँ पर एक बात विचारणीय है कि पूरी पृथ्वी के जल का केवल 1% ही मनुष्यों के पीने योग्य है, क्या हम इस अमूल्य प्राकृतिक पेय जल को नष्ट करना उचित है ?

सर्फ, डिटर्जेंट में खतरनाक केमिकल होते हैं, भले हम अच्छे से बर्तन धो भी लें, तो भी इस केमिकल की एक परत उस बर्तन पर अवश्य जमी रहती है, आगे जाकर उसमे भोजन रख कर आप जब खाते हैं, तब वो हमारे शरीर को हानि पहुंचाती है l

दूसरी बात यह है कि हम अपना झूठा किसी और से धुलवा रहे हैं जो कि अच्छी बात नही है, आजकल घरों में यह कार्य कामवाली बाइयां करती हैं, आप अपना खर्च बढ़ा रहे हो, पानी भी व्यर्थ कर रहे हो, केमिकल खाकर शरीर भी खराब कर रहे हो और कामवाली बाई को दुःख भी दे रहे हो l

क्यों न हम सनातन संस्कृति के अनुसार प्राचीन परम्पराओं की और लौटें, केले के पत्ते पर खाएं या वत वृक्ष के पत्तों के पत्तल पर भोजन किया करें l

इसके लाभ :
1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है l

2. न पानी नष्ट होगा l

3. न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा l

4. न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे l

5. न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी l

6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी l

7. प्रदूषण भी घटेगा

8. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिटटी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है l

9. पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा l

10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा
सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा l जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है l

मैं आपको एक व्यक्तिगत अनुभव बता रहा हूँ, मैं सितम्बर माह में चेन्नई में गया था, वहां पर मैं 3 दिन रहा, उस कार्यक्रम में लगभग 5000 लोगों ने तीन दिनों तक तीनो समय भोजन किया, अर्थात 3 दिन में 45000 लोगों ने भोजन किया l

इन 45000 लोगों ने पत्तल पर भोजन किया, सोचिये 3 दिन में इन्होने कितना पानी बचाया बर्तन धोने में जो व्यर्थ होना था, 45000 बर्तन धोने में कितना पानी व्यर्थ होना था, जो की सारा बच गया l और चेन्नई की नदियों में कितना प्रदूषित पानी जमा होने से बचाया गया l

आप भारत की जनसंख्या के अनुसार स्वयम सोचिये एवं विश्लेषण कीजिए कि कितना पानी प्रतिदिन हम अपनी नदियों में इसी प्रकार दूषित करके छोड़ते हैं, कितने गैलन पानी हम प्रतिदिन अपनी नदियों को दूषित बनाने हेतु दुरूपयोग करते हैं l हमारी जनसंख्या द्वारा अपनाई जा रही इन लापरवाहियों का खामियाजा आगे जाकर हमारी पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा l
आप अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं... अपनी पीढ़ियों का ध्यान क्यों नहीं रखना चाहते ?

यदि हो सके तो बाजार से पत्तल खरीदें, जिनके पास जगह हो वो अपने घर में एक केले का पेड़ लगा लें, फिर सोचिये आप इस सृष्टि के प्रति कितना सहयोग कर सकते हैं l

प्रतिदिन उन झूठी पत्तलों को कूड़ेदान में डाल दें, नगर निगम की गाड़ी आकर ले जाएगी या फिर अपने घर के पीछे ही कोई गड्ढा करके उसमे गाड़ दें l
आप इन महत्वपूर्ण बातों को समझ कर यदि अमल में लायेंगे तो आप वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण एवंम मिटटी की उर्वरकता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान निभा सकते हैं l

ऐसे बहुत से बुद्धिजीवी हैं जो इनसे भी बेहतर लाभ गिनवा सकते हैं, उन सबका साधुवाद है, वे और भी लाभ गिनवाएं और समाधान उपलब्ध करवाएं तो बहुत अच्छा रहेगा, आसपास के समाज को जागरूक करवाने का प्रयास करें l

कई विषयों पर हमारा संकोच ही हमारे, पतन और विनाश का कारण बन रहा है, हम हानि भी न करें, और प्रकृति को भी हानि न पहुंचाएं l
आइये लौटें अपनी सनातन संस्कृति की और जिसका ध्येय केवल मानव और प्रकृति का विकास है l —

गहरी नींद के आसान उपाय


गहरी नींद के आसान उपाय

* रात्रि भोजन करने के बाद पन्द्रह से बीस मिनट
धीमी चाल से सैर कर लेने के बाद ही बिस्तर पर जाने
की आदत बना लेनी चाहिए। इससे अच्छी नींद के
अलावा पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है।

* अनिद्रा के रोगी को अपने हाथ-पैर मुँह स्वच्छ जल
से धोकर बिस्तर पर जाना जाहिए। इससे नींद आने
में कठिनाई नहीं होगी। एक खास बात यह
कि बाजार में मिलने वाले सुगंधित तेलों का प्रयोग
नींद लाने के लिए नहीं करें, नहीं तो यह
आपकी आदत में शामिल हो जाएगा।

* सोते समय दिनभर का घटनाक्रम भूल जाएँ। अगले
दिन के कार्यक्रम के बारे में भी कुछ न सोचें।
सारी बातें सुबह तक के लिए छोड़ दें। दिनचर्या के
बारे में सोचने से मस्तिष्क में तनाव भर जाता है,
जिस कारण नींद नहीं आती।

* अपना पलंग मन-मुताबिक ही चुनें और जिस मुद्रा में
आपको सोने में आराम महसूस होता हो,
उसी मुद्रा में पहले सोने की कोशिश करें।
अनचाही मुद्रा में सोने से शरीर की थकावट
बनी रहती है, जो नींद में बाधा उत्पन्न करती है।

* अगर अनिद्रा की समस्या पुरानी और गंभीर है,
नींद की गोलियाँ खाने की आदत बनी हुई है
तो किसी योग चिकित्सक की सलाह लेकर
शवासन का अभ्यास करें और रात को सोते वक्त
शवासन करें। इससे पूरे शरीर
की माँसपेशियों का तनाव निकल जाता है और मस्तिष्क को आराम मिलता है, जिस कारण
आसानी से नींद आ जाती है।

* अच्छी नींद के लिए कमरे का हवादार
होना भी जरूरी है। अगर मौसम बाहर सोने के
अनुकूल है तो छत पर या बाहर सोने
को प्राथमिकता दें। कमरे में कूलर-पँखा या फिर
एयर कंडीशनर का शोर ज्यादा रहता है,
तो इनकी भी मरम्मत करवा लेनी चाहिए, क्योंकि शोर से मस्तिष्क उत्तेजित रहता है, जिस
कारण निद्रा में बाधा पड़ जाती है।
************************************** * सोने से पहले चाय-कॉफी या अन्य तामसिक
पदार्थों का सेवन नहीं करें। इससे मस्तिष्क
की शिराएँ उत्तेजित हो जाती हैं,
जो कि गहरी नींद आने में बाधक होती हैं।

काले बर्तन या काला ज़हर - जानिए इनसे होने वाली बीमारियां

काले बर्तन या काला ज़हर….....जानिए इनसे होने वाली बीमारियां
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टेफलोन शीट तो याद होगी सबको कैसे याद नहीं होगी आजकल दिन की शुरुवात ही उससे होती है चाय बनानी है तो नॉन स्टिक तपेली (पतीली), तवा, फ्राई पेन, ना जाने कितने ही बर्तन हमारे घर में है जो टेफलोन कोटिंग वाले हैं फास्ट टू कुक इजी टू क्लीन वाली छवि वाले ये बर्तन हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए है, जब ये लिख रही हू तो दादी नानी वाला ज़माना याद आ जाता है जब चमकते हुए बर्तन स्टेंडर्ड की निशानी माने जाते थे आजकल उनकी जगह काले बर्तनों ने ले ली.

हम सब इन बर्तनों को अपने घर में उपयोग में लेते आए है और शायद कोई बहुत बेहतर विकल्प ना मिल जाने तक आगे भी उपयोग करते रहेंगे पर, इनका उपयोग करते समय हम ये बात भूल जाते है की ये हमारे शरीर को नुक्सान पहुंचा सकते है या हम में से कई लोग ये बात जानते भी नहीं की सच में ऐसा कुछ हो सकता है कि ये बर्तन हमारी बीमारियाँ बढ़ा सकते है या हमारे अपनों को तकलीफ दे सकते है और हमारे पक्षियों की जान भी ले सकते है.
चौंकिए मत ये सच है. हालाँकि टेफलोन को 20 वी शताब्दी की सबसे बेहतरीन केमिकल खोज में से एक माना गया है स्पेस सुइट और पाइप में इसका प्रयोग उर्जा रोधी के रूप में किया जाने लगा पर ये भी एक बड़ा सच है की ये स्वास्थ के लिए हानिकारक है इसके हानिकारक प्रभाव जन्मजात बिमारियों ,सांस की बीमारी जेसी कई बिमारियों के रूप में देखे जा सकते हैं.

ये भी सच है की जब टेफलोन कोटेड बर्तन को अधिक गर्म किया जाता है तो पक्षियों की जान जाने का खतरा काफी बढ़ जाता है कुछ ही समय पहले 14 पक्षी तब मारे गए जब टेफलोन के बर्तन को पहले से गरम किया गया और तेज आंच पर खाना बनाया गया, ये पूरी घटना होने में सिर्फ 15 मिनिट लगे.
टेफलोन कोटेड बर्तनों में सिर्फ 5 मिनिट में 721 डिग्री टेम्प्रेचर तक गर्म हो जाने की प्रवृति देखी गई है और इसी दोरान 6 तरह की गैस वातावरण में फैलती है इनमे से 2 एसी गैस होती है जो केंसर को जन्म दे सकती है. अध्ययन बताते हैं कि टेफलोन को अधिक गर्म करने से टेफलोन टोक्सिकोसिस (पक्षियों के मामले में ) और पोलिमर फ्यूम फीवर ( इंसानों के मामले में ) की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है .


टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से होने वाली बीमारियाँ:

1 . पुरुष इनफर्टिलिटी : हाल ही में किए गए एक डच अध्यन में ये बात सामने आई है लम्बे समय तक टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से पुरुष इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है और इससे सम्बंधित कई बीमारियाँ पुरुषों में देखी जा सकती है.
२. थायराइड : हाल ही में एक अमेरिकन एजेंसी द्वारा किया गए अध्यन में ये बात सामने आई क2 टेफलोन की मात्र लगातार शरीर में जाने से थायराइड ग्रंथि सम्बन्धी समस्याएं हो सकती है.
3. बच्चे को जन्म देने में समस्या : केलिफोर्निया में हुई एक स्टडी में ये पाया गया की जिन महिलाओं के शरीर में जल ,वायु या भोजन किसी भी माध्यम से पी ऍफ़ ओ (टेफलोन) की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई उन्हें बच्चो को जन्म देते समय अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा इसी के साथ उनमे बच्चो को जन्म देने की शमता भी अपेक्षाकृत कम पाई गई.
4 . केंसर या ब्रेन ट्यूमर का खतरा : एक प्रयोग के दौरान जब चूहों को पी ऍफ़ ओ के इंजेक्शन लगाए गए तो उनमे ब्रेन ट्यूमर विकसित हो गया साथ ही केंसर के लक्षण भी दिखाई देने लगे. पी ऍफ़ ओ जब एक बार शरीर के अन्दर चला जाता है तो लगभग 4 साल तक शरीर में बना रहता है जो एक बड़ा खतरा हो सकता है .
5. शारीरिक समस्याएं व अन्य बीमारियाँ : पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा शरीर में पाई जाने वाली महिलाओं के बच्चो पर भी इसका असर जन्मजात शारीरिक समस्याओं के रूप में देखा गया है इसीस के साथ अद्द्याँ में ये सामने आया है की पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा लीवर केंसर का खतरा बढ़ा देती है .

बर्तन सिर्फ़ मिट्टी या पीतल के ही उत्तम है,
स्टील और एलुमिनियम जहर है

चिकनगुनिया नाम की बीमारी

मित्रो कुछ दिनो पहले चिकनगुनिया नाम की बीमारी बहुत तेजी से अपने देश मे फैली !! लाखो की संख्या मे लोग इससे प्रभावित हुये ! और हजारो लोग मरे ! हमेशा की तरह सरकार के हाथ खड़े रहे !

श्री राजीव दीक्षित जी ने 6 महीने गाँव -गाँव घूम-घूम कर आयुर्वेदिक दवा से सैंकड़ों लोगो को बचाया !!और ये दवा बनानी कितनी आसान है !

तुलसी का काढ़ा पी लो !

नीम की गिलोय होती है उसको भी उसमे डाल लो !

थोड़ी सोंठ(सुखी अदरक) डाल लो !

थोड़ी छोटी पीपर डाल लो !

और अंत थोड़ा गुड मिला लो ! क्यूंकि ज्यादा कड़वा हो जाता है तो कई बार पिया नहीं जाता !

मात्र इसकी 3 खुराक से राजीव भाई ने हजारो लोगो का चिकनगुनिया पूरा खत्म कर दिया !!
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और जो ये एलोपेथी वाले ने किया ! Boveron के 3 -3 इंजेक्शन ठोक दो ! diclofenac दे दो !
Paracetamol भी दे दो ! जो इनके पास है सब मरीज को ठोक दिया ! और लोग 20 -20 दिन से बिस्तर मे पड़े तड़पते रहे !!

और कुछ डाक्टर जिनको खुद चिकनगुनिया हो गया ! राजीव भाई के पास आए और बोलो कुछ बता दो ! राजीव भाई ने कहा अपना इंजेक्शन खुद क्यूँ नहीं ठोक लेते ! तो उन्होने ने कहा हमे मालूम है इसके side effects क्या हैं !

तो राजीव भाई ने कहा मरीज को क्यूँ नहीं बताते ???
क्या इतने हरामखोर हो ??

तुम जानते हो Boveron लगाएंगे मुंह मे छाले हो जाएँगे ! गले मे छालें हो जाएँगे ! अल्सर होने की भी संभावना है ! ये सब तुम जानते हो तो मरीज को क्यूँ नहीं बताते ???

ये हरामखोरी तुम मे कहाँ से आ गई ??

अपने को ये सब इंजेक्शन लगाओ नहीं ! और मरीज को ठोकते जाओ ठोकते जाओ ! और तुमके मालूम है मरीज इससे ठीक होने वाला नहीं ! फिर Paracetamol दे दो फिर novalgin दे दो !

और दुर्भाग्य से ये सारी दवाएं यूरोप के देशों मे पीछले 20 -20 से बंद है ! वो कहते है diclofenac खराब है !Paracetamol तो जहर है ! novaljin तो 1984 से बैन हैं अमेरिका मे ! और वही इंजेक्शन ठोक रहें बार बार ! और मरीज जो है ठीक ही नहीं हो रहा !!

राजीव भाई बताते है होमेओपेथी की तो बहुत सी दवा तो आयुर्वेद से हीं गाई ! आप मे से कुछ होमेओपेथी डाक्टर होंगे तो वो जानते होंगे ! तुलसी से ही ocimum बनी हैं ! तो ocimum की तीन तीन खुराक देकर राजीव भाई ने कर्नाटक राज्य मे 70 हजार लोगो को चलता कर दिया ! और वो 20 -20 दिन से एलोपेथी खा रहे थे result नहीं आ रहा था ! बुखार रुक नहीं रहा था उल्टी पे उल्टी हो रही थी ! नींद आ नहीं रही थी और ocimum 200 की तीन तीन खुराक से
सब ठीक कर दिया !

और अंत कर्नाटक राज्य की सरकार ने इसके परिणाम देख अपने सारे डाएरेक्टर,जोयन डेरेक्टर ! लगा दिये कि जाओ देखो ये राजीव दीक्षित क्या दे रहा है !

राजीव भाई 70 हजार लोगो को दवा दी सिर्फ 6 मरे ! औए उन्होने 1 लाख 22 हजार लोगो की दी मुश्किल से 6 बचे !! ये कर्नाटक का हाल था ! राजीव भाई बोले मेरी मजबूरी ये थी की कार्यकर्ता कम पढ़ गए ! अगर 1 -2 हजार डाक्टरों की टीम साथ होती ! तो हम कर्नाटक के उन लाखो लोगो को बचा लेते जो मर गए !

तो मित्रो ये तुलसी ,नीम सोंठ ,पीपर सब आपके घर मे आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं ! इनके प्रयोग से आप रोगी की जान बचा सकते हैं ! और अगर पूरे शहर या गाँव मे फैल जाये ! एक एक को काढ़ा पिलाना मुश्किल हो तो होमेओपेथी की ocimum 200 की दो दो बुँदे 3 -3 बार मरीजो को दीजिये !!
उनका अनमोल जीवन और पैसा बचाइए !

पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click कर देखें !
https://www.youtube.com/watch?v=PmQnBJbq5X8

Sunday, April 7, 2019

मोटापा कम करने के लिए दही प्रभावशाली है

जिन्हें दूध अच्छा नहीं लगता , उनके लिए दही एक रुचिकर और सेहतमंद माध्यम है.

दही में अच्छी किस्म के बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं.
- दही के नियमित सेवन से आंतों के रोग और पेट की बीमारियां नहीं होती हैं तथा कई प्रकार के विटामिन बनने लगते हैं। दही में जो बैक्टीरिया होते हैं, वे लेक्टेज बैक्टीरिया उत्पन्न करते हैं।

- मोटापा कम करने के लिए दही प्रभावशाली है।

- दही में हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और गुर्दों की बीमारियों को रोकने की अद्भुत क्षमता है। यह हमारे रक्त में बनने वाले कोलेस्ट्रोल नामक घातक पदार्थ को बढ़ने से रोकता है, जिससे वह नसों में जमकर ब्लड सर्कुलेशन को प्रभावित न करे और हार्टबीट सही बनी रहे।

- दही में कैल्शियम की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो हमारे शरीर में हड्डियों का विकास करती है। दांतों एवं नाखूनों की मजबूती एवं मांसपेशियों के सही ढंग से काम करने में भी सहायक है।

- पेट में गड़बड़ हो, पतले दस्त हों तो दही के साथ ईसबगोल की भूसी लें। दही के साथ चावल खाएं।

- बवासीर के रोगियों को चाहिए कि दोपहर में भोजन के बाद एक गिलास छाछ में अजवायन डालकर पीएं।

- पेट के रोगियों को चाहिए कि ज्वार की रोटी के साथ दही लें। दही का सेवन भुने हुए जीरे व सेंधा नमक के साथ करें।

- दही में शहद मिलाकर चटाने से छोटे बच्चों के दांत आसानी से निकलते हैं।

- मुंह के छालों में दही कम करने के लिए दिन में कई बार दही की मलाई लगाएं। इसके अलावा शहद व दही की समान मात्रा मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।

- गर्मी के मौसम में दही की छाछ या लस्सी बनाकर पीने से पेट की गर्मी शांत हो जाती है। इसे पीकर बाहर निकलें तो लू लगने का डर भी नहीं रहता है।

- दुबले व्यक्तियों को चाहिए कि दही में किशमिश, बादाम, छुहारा आदि मिलाकर पीएं। इससे वजन बढ़ता है।

- दही में नींबू का रस मिलाकर चेहरे, गर्दन, कोहनी, एड़ी, हाथों पर लगाएं। कुछ देर बाद कुनकुने पानी से धो डालें।
- अगर गर्दन के पिछले भाग में कालापन जमा हो गया है नहाते समय गर्दन पर खट्टी दही से मालिश करें और धो लें।
- बालों को सुंदर, स्वस्थ व नीरोग रखने के लिए बालों को धोने के लिए दही या छाछ का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि दही में वे सब तत्व मौजूद रहते हैं, जिनकी बालों को आवश्यकता रहती है। स्नान से पूर्व दही को बालों में डालकर अच्छी तरह मालिश करें ताकि बालों की जड़ों तक दही पहुंच जाए। कुछ समय बाद बालों को धो दें। दही के प्रयोग से खुश्की, रूसी व फियास समाप्त हो जाती है।

- दही को जीरे व हींग का छौंक लगाकर खाने से जोड़ों के दर्द में लाभ पहुंचता है। यह स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।

- गर्मी के दिनों में पसीना काफी निकलता है। पसीने की बदबू दूर करने के लिए दही और बेसन मिलाकर शरीर पर मालिश करें तथा कुछ देर बाद स्नान करें, इससे पसीने की बदबू दूर हो जाती है।
- नींद न आने से परेशान रहने वाले लोगों को दही व छाछ का सेवन करना चाहिए।
- दही का सेवन कुछ आयुर्वेदिक औषधियों में सह्पान के साथ कराने का भी विधान है, जिससे दवा का प्रभाव बढ़ जाता है।

सावधानी --
- दही हमेशा ताजी ही प्रयोग करनी चाहिए।

- रात्रि में दही नही किया जाना चाहिए।

- मांसाहार के साथ दही के सेवन को विरुद्ध माना गया है।

- दही दस्त या अतिसार के रोगियों में मल को बांधनेवाली होती है,पर सामान्य अवस्था में कब्ज कर सकती है।
- मधुमेह से पीडि़त रोगियों में दही का सेवन संयम से करना चाहिए।
- जब खांसी,जुखाम,टांसिल्स एवं, सांस की तकलीफ हो तब दही का सेवन न करें तो अच्छा।

- दही सदैव ताज़ी एवं शुद्ध घर में मिटटी के बर्तन क़ी बनी हो तो अत्यंत गुणकारी होती है।

- त्वचा रोगों में दही का सेवन सावधानी पूर्वक चिकित्सक के निर्देशन में करना चाहिए।

- मात्रा से अधिक दही के सेवन से बचना चाहिए।

दन्तशूल(toothache) के घरेलू उपचार ::

दन्तशूल(toothache) के घरेलू उपचार ::

दांत,मसूढों और जबडों में होने वाली पीडा को दंतशूल से
परिभाषित किया जाता है। हममें से कई
लोगों को ऐसी पीडा अकस्मात हो जाया करती है। दांत में
कभी सामान्य तो कभी असहनीय दर्द उठता है।
रोगी को चेन नहीं पडता। मसूडों में सूजन आ जाती है।
दांतों में सूक्छम जीवाणुओं का संक्रमण हो जाने से स्थिति और बिगड जाती है। मसूढों में घाव बन जाते हैं
जो अत्यंत कष्टदायी होते हैं।दांत में सडने
की प्रक्रिया शुरु हो जाती है और उनमें केविटी बनने
लगती है।जब सडन की वजह से दांत
की नाडियां प्रभावित हो जाती हैं तो पीडा अत्यधिक
बढ जाती है। प्राकृतिक उपचार दंत पीडा में लाभकारी होते हैं।
सदियों से हमारे बडे-बूढे दांत के दर्द में घरेलू
पदार्थों का उपयोग करते आये हैं। यहां हम ऐसे
ही प्राकृतिक उपचारों की चर्चा कर रहे हैं।

१) बाय बिडंग १० ग्राम,सफ़ेद फ़िटकरी १० ग्राम लेकर
तीन लिटर जल में उबालकर जब मिश्रण एक लिटर रह
जाए तो आंच से उतारकर ठंडा करके एक बोत्तल में भर लें।
दवा तैयार है। इस क्वाथ से सुबह -शाम कुल्ले करते रहने से
दांत की पीडा दूर होती है और दांत भी मजबूत बनते हैं।

२) लहसुन में जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। लहसुन की एक
कली थोडे से सैंधा नमक के साथ पीसें फ़िर इसे दुखने वाले
दांत पर रख कर दबाएं। तत्काल लाभ होता है। प्रतिदिन
एक लहसुन कली चबाकर खाने से दांत की तकलीफ़ से
छुटकारा मिलता है।

३) हींग दंतशूल में गुणकारी है। दांत की गुहा(केविटी) में
थोडी सी हींग भरदें। कष्ट में राहत मिलेगी।

४) तंबाखू और नमक महीन पीसलें। इस टूथ पावडर से रोज
दंतमंजन करने से दंतशूल से मुक्ति मिल जाती है।

५) बर्फ़ के प्रयोग से कई लोगों को दांत के दर्द में
फ़ायदा होता है। बर्फ़ का टुकडा दुखने वाले दांत के ऊपर
या पास में रखें। बर्फ़ उस जगह को सुन्न करके लाभ
पहुंचाता है।

६) कुछ रोगी गरम सेक से लाभान्वित होते हैं। गरम
पानी की थैली से सेक करना प्रयोजनीय है।

७) प्याज कीटाणुनाशक है। प्याज को कूटकर लुग्दी दांत पर
रखना हितकर उपचार है। एक छोटा प्याज नित्य
भली प्रकार चबाकर खाने की सलाह दी जाती है। इससे
दांत में निवास करने वाले जीवाणु नष्ट होंगे।

८) लौंग के तैल का फ़ाया दांत की केविटी में रखने से तुरंत
फ़ायदा होगा। दांत के दर्द के रोगी को दिन में ३-४ बार
एक लौंग मुंह में रखकर चूसने की सलाह दी जाती है।

९) नमक मिले गरम पानी के कुल्ले करने से दंतशूल
नियंत्रित होता है। करीब ३०० मिलि पानी मे एक
बडा चम्मच नमक डालकर तैयार करें।दिन में तीन बार
कुल्ले करना उचित है।

१०) पुदिने की सूखी पत्तियां पीडा वाले दांत के
चारों ओर रखें। १०-१५ मिनिट की अवधि तक रखें।
ऐसा दिन में १० बार करने से लाभ मिलेगा।

११) दो ग्राम हींग नींबू के रस में पीसकर पेस्ट जैसा बनाले।
इस पेस्ट से दंत मंजन करते रहने से दंतशूल का निवारण
होता है।

१२। मेरा अनुभव है कि विटामिन सी ५०० एम.जी. दिन
में दो बार और केल्सियम ५००एम.जी दिन में एक बार लेते
रहने से दांत के कई रोग नियंत्रित होंगे और दांत
भी मजबूत बनेंगे।

१३) मुख्य बात ये है कि सुबह-शाम
दांतों की स्वच्छता करते रहें। दांतों के बीच की जगह में
अन्न कण फ़ंसे रह जाते हैं और उनमें जीवाणु पैदा होकर दंत
विकार उत्पन्न करते हैं।

१४) शकर का उपयोग हानिकारक है। इससे दांतो में
जीवाणु पैदा होते हैं। मीठी वसुएं हानिकारक हैं। लेकिन
कडवे,ख्ट्टे,कसेले स्वाद के पदार्थ दांतों के लिये हितकर
होते है। नींबू,आंवला,टमाटर ,नारंगी का नियमित
उपयोग लाभकारी है। इन फ़लों मे जीवाणुनाशक तत्व होते
हैं। मसूढों से अत्यधिक मात्रा में खून जाता हो तो नींबू का ताजा रस पीना लाभकारी है।

१५) हरी सब्जियां,रसदार फ़ल भोजन में प्रचुरता से
शामिल करें।

१६) दांतों की केविटी में दंत चिकित्सक केमिकल
मसाला भरकर इलाज करते हैं। सभी प्रकार के जतन करने
पर भी दांत की पीडा शांत न हो तो दांत
उखडवाना ही आखिरी उपाय है

आस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार


आस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार


आयुर्वेद में ऑस्टियोआर्थराइटिस को संधिवात के रूप
में जाना जाता है, जो कि जोडों का विकार है।
इसका मतलब है, कि हमारे शरीर के निचले हिस्से
की हड्डियों को सपोर्ट देने वाले सुरक्षात्मक
कार्टिलेज और कोमल ऊतकों का किसी कारणवश
टूटना शुरू होना हैं। इस हालत में किसी भी गतिविधि के बाद या आराम
की लंबी अवधि के बाद जोड़ों का लचिलापन कम
हो जाता है और वो सख्त हो जाते हैं, और दर्द दायक बनते
हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए एलोपैथिक उपचार
के अलावा, कुछ आयुर्वेदिक इलाज भी उपलब्ध हैं। जैसा कि आप जानते हैं, आयुर्वेद कहता हैं की शरीर में तीन
जीव-ऊर्जा या दोष होते हैं, जो हमारे शरीर के विभिन्न
कार्यों को नियंत्रित करते हैं। वात, कफ और पित्त
यह उनके नाम हैं । जब एक व्यक्ति किसी भी प्रकार
की बीमारी से ग्रस्त होता है,तब यह इन दोषों में असंतुलन
की वजह से होता हैं।

ऑस्टियोआर्थराइटिस वात दोष में एक असंतुलन के कारण होता है और इसलिए
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक इलाज में
इस दोष को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित
किया जाता है, जिससे व्यक्ति को दर्द से राहत
मिलने में आसानी होती हैं। आयुर्वेदिक दवाओं में यह जड़ी बूटी हैं –

• गुग्गुल - ऊतकों को मजबूत बनाने के लिए

• त्रिफला – विषैले तत्वो को शरीर से साफ करना

• अश्वगंधा - शरीर और मन को आराम और तंत्रिका तंत्र
को उत्तेजना देना

• कॅस्टर(एरंडी) तेल – दर्द होनेवाले क्षेत्र में लगाने के
साथ, ही इसका सेवन भी लिया जा सकता है क्योंकि यह एक प्रभावी औषधि है

• बाला - शरीर में रक्त परिसंचरण को बढ़ाने के लिए,
दर्द को कम करने के लिए, नसों को ठीक करने के साथ
ही शरीर में ऊतकों के विकास को प्रोत्साहित करने के
लिए

• शालाकी - अपने सूजन विरोधी गुणों के लिए और शरीर की हड्डियों के करीब के ऊतकों की मरम्मत करने
में सक्षम होने के गुण के लिए उपयोगी हैं
बाजार में विभिन्न आयुर्वेदिक दवाएं उपलब्ध हैं,
जो ऑस्टियोआर्थराइटिस से राहत और ठीक करने में
मददगार साबित होती हैं। हालांकि, चिकित्सक और
एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करना आवश्यक होता हैं, क्योंकि वो आपकी बीमारी के
अनुसार सही दवा देने में सक्षम होते हैं। दवाओं के अलावा आयुर्वेद में ऑस्टियोआर्थराइटिस के
इलाज के लिए अन्य उपचार भी हैं। यह सब उपचार कई
आयुर्वेदिक मालिश चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध
होते हैं। इन उपचारों में से कुछ हैं –

• अभ्यांग – यह एक हर्बल तेल मालिश है,
जो ऊतकों को मजबूत बनाने और रक्त परिसंचरण में सुधार ला सकती हैं

• स्वेदा – एक औषधीय भाप स्नान शरीर दर्द को कम
करने और शरीर के विषैले तत्वों को कम करने के लिए
उपयोग किया जाता हैं

• नजावाराकिझी - एक कायाकल्प करने वाली मालिश हैं
जो ऊतकों को मजबूत बनाने में भी मदद करती हैं उपरोक्त उपचारों के अलावा, कुछ अन्य बातें भी हैं
जिनको ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक
उपचार करते वक्त ध्यान में रखा जाना चाहिए।

• हर रोज 30 से 40 मिनट चलना

• खुद को बहुत थकाये नहीं

• नियमित भोजन में घी और तेल को मध्यम मात्रा में शामिल करे, क्योंकि वह ऊतकों और जोड़ों चिकनापन
और लचिलापन बनाए रखने में मदद करते हैं।

• डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से बचें, हर रोज
ताजा खाना बनाए और जब खाना गरम हो तभी खाना खाने
की कोशिश करे।

• हर कीमत पर साफ्टड्रिंक और कार्बोनेटड पेय से बचें क्योंकि वे शरीर के कार्य़ को नुकसान पहुंचाते हैं।

• मसालेदार, तीखा और अत्य धिक तेलयुक्त भोजन से
बचें।

बालों की चिकित्सा :


बालों का बढ़ना


चिकित्सा :

1. अमरबेल : 250 ग्राम अमरबेल को लगभग 3 लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोयें। इससे बाल लंबे होते हैं।
2. त्रिफला : त्रिफला के 2 से 6 ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बन्द हो जाता है।
3. कलौंजी : 50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें। इस उबले हुए पानी से बालों को धोएं। इससे बाल 1 महीने में ही काफी लंबे हो जाते हैं।
4. नीम : नीम और बेर के पत्तों को पानी के साथ पीसकर सिर पर लगा लें और इसके 2-3 घण्टों के बाद बालों को धो डालें। इससे बालों का झड़ना कम हो जाता है और बाल लंबे भी होते हैं।
5. लहसुन : लहसुन का रस निकालकर सिर में लगाने से बाल उग आते हैं।
6. सीताफल : सीताफल के बीज और बेर के बीज के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बालों की जड़ों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लंबे हो जाते हैं।
7. आम : 10 ग्राम आम की गिरी को आंवले के रस में पीसकर बालों में लगाना चाहिए। इससे बाल लंबे और घुंघराले हो जाते हैं।
8. शिकाकाई : शिकाकाई और सूखे आंवले को 25-25 ग्राम लेकर थोड़ा-सा कूटकर इसके टुकड़े कर लें। इन टुकड़ों को 500 ग्राम पानी में रात को डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को कपड़े के साथ मसलकर छान लें और इससे सिर की मालिश करें। 10-20 मिनट बाद नहा लें। इस तरह शिकाकाई और आंवलों के पानी से सिर को धोकर और बालों के सूखने पर नारियल का तेल लगाने से बाल लंबे, मुलायम और चमकदार बन जाते हैं। गर्मियों में यह प्रयोग सही रहता है। इससे बाल सफेद नहीं होते अगर बाल सफेद हो भी जाते हैं तो वह काले हो जाते हैं।
9. मूली : आधी से 1 मूली रोजाना दोपहर में खाना-खाने के बाद, कालीमिर्च के साथ नमक लगाकर खाने से बालों का रंग साफ होता है और बाल लंबे भी हो जाते हैं। इसका प्रयोग 3-4 महीने तक लगातार करें। 1 महीने तक इसका सेवन करने से कब्ज, अफारा और अरुचि में आराम मिलता है।
नोट : मूली जिसके लिए फयदेमन्द हो वही इसका प्रयोग कर सकते हैं।
10. आंवला : सूखे आंवले और मेंहदी को समान मात्रा में लेकर शाम को पानी में भिगो दें। प्रात: इससे बालों को धोयें। इसका प्रयोग लगातार कई दिनों तक करने से बाल मुलायम और लंबे हो जायेंगे।
11. ककड़ी : ककड़ी में सिलिकन और सल्फर अधिक मात्रा में होता है जो बालों को बढ़ाते हैं। ककड़ी के रस से बालों को धोने से तथा ककड़ी, गाजर और पालक सबको मिलाकर रस पीने से बाल बढ़ते हैं। यदि यह सब उपलब्ध न हो तो जो भी मिले उसका रस मिलाकर पी लें। इस प्रयोग से नाखून गिरना भी बन्द हो जाता है।
12. रीठा
* कपूर कचरी 100 ग्राम, नागरमोथा 100 ग्राम, कपूर तथा रीठे के फल की गिरी 40-40 ग्राम, शिकाकाई 250 ग्राम और आंवले 200 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी का चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण के 50 ग्राम चूर्ण में पानी मिलाकर लुग्दी (लेप) बनाकर बालों में लगाना चाहिए। इसके पश्चात् बालों को गरम पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अन्दर की जूं-लींकें मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं।
* रीठा, आंवला, सिकाकाई तीनों को मिलाने के बाद बाल धोने से बाल सिल्की, चमकदार, रूसी-रहित और घने हो जाते हैं।
13. गुड़हल : * गुड़हल के फूलों के रस को निकालकर सिर में डालने से बाल बढ़ते हैं।
* गुड़हल के पत्तों को पीसकर लुग्दी बना लें। इस लुग्दी को नहाने से 2 घंटे पहले बालों की जड़ों में मालिश करके लगायें। फिर नहायें और इसे साफ कर लें। इस प्रयोग को नियमित रूप से करते रहने से न केवल बालों को पोषण मिलेगा, बल्कि सिर में भी ठंड़क का अनुभव होगा।
* गुड़हल के पत्ते और फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर पीसकर लेप तैयार करें। इस लेप को सोते समय बालों में लगाएं और सुबह धोयें। ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ बने रहते हैं।
* गुड़हल के ताजे फूलों के रस में जैतून का तेल बराबर मिलाकर आग पर पकायें, जब जल का अंश उड़ जाये तो इसे शीशी में भरकर रख लें। रोजाना नहाने के बाद इसे बालों की जड़ों में मल-मलकर लगाना चाहिए। इससे बाल चमकीले होकर लंबे हो जाते हैं।
14. शांखपुष्पी : शांखपुष्पी से निर्मित तेल रोज लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
15. भांगरा :
* बालों को छोटा करके उस स्थान पर जहां पर बाल न हों भांगरा के पत्तों के रस से मालिश करने से कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंहे हो जाते हैं। उन्हें इस प्रयोग को अवश्य ही करना चाहिए।
* त्रिफला के चूर्ण को भांगरा के रस में 3 उबाल देकर अच्छी तरह से सुखाकर खरल यानी पीसकर रख लें। इसे प्रतिदिन सुबह के समय लगभग 2 ग्राम तक सेवन करने से बालों का सफेद होना बन्द जाता है तथा इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
* आंवलों का मोटा चूर्ण करके, चीनी के मिट्टी के प्याले में रखकर ऊपर से भांगरा का इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जाएं। फिर इसे खरलकर सुखा लेते हैं। इसी प्रकार 7 भावनाएं (उबाल) देकर सुखा लेते हैं। प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन से करने से असमय ही बालों का सफेद होना बन्द जाता है। यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने वाला, उम्र को बढ़ाने वाला लाभकारी योग है।
* भांगरा, त्रिफला, अनन्तमूल और आम की गुठली का मिश्रण तथा 10 ग्राम मण्डूर कल्क व आधा किलो तेल को एक लीटर पानी के साथ पकायें। जब केवल तेल शेष बचे तो इसे छानकर रख लें। इसके प्रयोग से बालों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।
16. अनन्तमूल : अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 2-2 ग्राम दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन करने से सिर का गंजापन दूर होता है।
17. तिल :
* तिल के पौधे की जड़ और पत्तों के काढ़े से बालों को धोने से बालों पर काला रंग आने लगता है।
* काले तिलों के तेल को शुद्ध करके बालों में लगाने से बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। प्रतिदिन सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल हमेशा मुलायम, काले और घने रहते हैं।
* तिल के फूल और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर घी और शहद में पीसकर लेप बना लें। इसे सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।
* तिल के तेल की मालिश करने के एक घंटे बाद एक तौलिया गर्म पानी में डुबोकर उसे निचोड़कर सिर पर लपेट लें तथा ठण्डा होने पर दोबारा गर्म पानी में डुबोकर निचोड़कर सिर पर लपेट लें। इस प्रकार 5 मिनट लपेटे रखें। फिर ठंड़े पानी से सिर को धो लें। ऐसा करने से बालों की रूसी दूर हो जाती है।

आलू के औषधीय प्रयोग

आलू के औषधीय प्रयोग

1.बेरी-बेरी:-बेरी-बेरी का सरलतम् सीधा-सादा अर्थ है-”चल नहीं सकता” इस रोग से जंघागत नाड़ियों में कमजोरी का लक्षण विशेष रूप से होता है। आलू पीसकर या दबाकर रस निकालें, एक चम्मच की मात्रा के हिसाब से प्रतिदिन चार बार पिलाएं। कच्चे आलू को चबाकर रस निगलने से भी यह लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

2.रक्तपित्त :-यह रोग विटामिन “सी” की कमी से होता है। इस रोग की प्रारिम्भक अवस्था में शरीर ए

वं मन की शक्ति कमजोर हो जाती है अर्थात् रोगी का शरीर निर्बल, असमर्थ, मन्द तथा पीला-सा दिखाई देता है। थोड़े-से परिश्रम से ही सांस फूल जाती है। मनुष्य में सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता आ जाती है। रोग के कुछ प्रकट रूप में होने पर टांगों की त्वचा पर रोमकूपों के आसपास आवरण के नीचे से रक्तस्राव होने (खून बहने) लगता है। बालों के चारों ओर त्वचा के नीचे छोटे-छोटे लाल चकत्ते निकलते हैं फिर धड़ की त्वचा पर भी रोमकूपों के आस-पास ऐसे बड़े-बड़े चकत्ते निकलते हैं। त्वचा देखने में खुश्क, खुरदुरी तथा शुष्क लगती है। दूसरे शब्दों में-अति किरेटिनता (हाइपर केराटोसिस) हो जाता है। मसूढ़े पहले ही सूजे हुए होते हैं और इनसे खून निकलने लगता है बाद में रोग बढ़ने पर टांगों की मांसपेशियों विशेषकर प्रसारक पेशियों से रक्तस्राव होने लगता है और तेज दर्द होता है। हृदय मांस से भी स्राव होकर हृदय शूल का रोग हो सकता है। नासिका आदि से खुला रक्तस्राव भी हो सकता है। हडि्डयों की कमजोरी और पूयस्राव भी बहुधा विटामिन “सी” की कमी से प्रतीत होता है। कच्चा आलू रक्तपित्त को दूर करता है।

3.त्वचा की झुर्रियां:-सर्दी से ठंडी सूखी हवाओं से हाथों की त्वचा पर झुर्रियां पड़ने पर कच्चे आलू को पीसकर हाथों पर मलना गुणकारी हैं। नींबू का रस भी इसके लिए समान रूप से उपयोगी है। कच्चे आलू का रस पीने से दाद, फुन्सियां, गैस, स्नायुविक और मांसपेशियों के रोग दूर होते हैं।

4.गौरवर्ण, गोरापन:-आलू को पीसकर त्वचा पर मलने से रंग गोरा हो जाता है।

5.आंखों का जाला एवं फूला:-कच्चा आलू साफ-स्वच्छ पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम आंख में काजल की भांति लगाने से पांच से छ: वर्ष पुराना जाला और चार वर्ष तक का फूला तीन महीने में साफ हो जाता है।

6.मोटापा:-आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू को तलकर तीखे मसाले घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख में भूनकर खाना लाभकारी है। सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि सूखे चावलों में 6-7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस प्रकार आलू में अधिक प्रोटीन पाया जाता है। आलू में मुर्गियों के चूजों जैसी प्रोटीन होती है। बड़ी आयु वालों के लिए प्रोटीन आवश्यक है। आलू की प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाली और वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने वाली होती है।

7.बच्चों का पौष्टिक भोजन:-आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं।

आलू का रस निकालने की विधि :
आलू को ताजे पानी से अच्छी तरह धोकर छिलके सहित कद्दूकस करके इस लुगदी को कपड़े में दबाकर रस निकाल लें। इस रस को 1 घंटे तक ढंककर रख दें। जब सारा कचरा, गूदा नीचे जम जाए तो ऊपर का निथरा रस अलग करके काम में लें।"

8.सूजन:-कच्चे आलू को सब्जी की तरह काट लें। जितना वजन आलू का हो, उसके लगभग 2 गुना पानी में उसे उबालें। जब मात्र एक भाग पानी शेष रह जाए तो उस पानी से चोट से उत्पन्न सूजन वाले अंग को धोकर सेंकने से लाभ होगा।

नोट : गुर्दे या वृक्क (किडनी) के रोगी भोजन में आलू खाएं। आलू में पोटैशियम की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है और सोडियम की मात्रा कम। पोटैशियम की अधिक मात्रा गुर्दों से अधिक नमक की मात्रा निकाल देती है। इससे गुर्दे के रोगी को लाभ होता है। आलू खाने से पेट भर जाता है और भूख में सन्तुष्टि अनुभव होती है। आलू में वसा (चर्बी) यानि चिकनाई नहीं पाई जाती है। यह शक्ति देने वाला है और जल्दी पचता है। इसलिए इसे अनाज के स्थान पर खा सकते हैं।"

9.उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर):-इस बीमारी के रोगियों को आलू खाने से रक्तचाप को सामान्य बनाने में अधिक लाभ प्राप्त होता है। पानी में नमक डालकर आलू उबालें। (छिलका होने पर आलू में नमक कम पहुंचता है।) और आलू नमकयुक्त भोजन बन जाता है। इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप में लाभ करता है क्योंकि आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है।

10.अम्लता (एसीडिटी):-आलू की प्रकृति क्षारीय है जो अम्लता को कम करती है। जिन रोगियों के पाचन अंगों में अम्लता की अधिकता है, खट्टी डकारें आती है और वायु (गैस) अधिक बनती है, उनके लिए गरम-गरम राख या रेत में भुना हुआ आलू बहुत ही लाभदायक है। भुना हुआ आलू गेहूं की रोटी से आधे समय में पच जाता है। यह पुरानी कब्ज और अन्तड़ियों की दुंर्गध को दूर करता है। आलू में पोटैशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त को रोकता है।

11.गुर्दे की पथरी (रीनल स्टोन):-एक या दोनों गुर्दों में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक मात्रा में पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियां और रेत आसानी से निकल जाती हैं। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो पथरी को निकालता है तथा पथरी बनने से रोकता है।

12.त्वचा का सौंदर्य:-जले हुए स्थान पर कच्चा आलू पीसकर लगाएं तथा तेज धूप, लू से त्वचा झुलस गई हो तो कच्चे आलू का रस झुलसी त्वचा पर लगाने से सौंदर्य में निखार आ जाता है।

13.हृदय की जलन:-*इस रोग में आलू का रस पीएं। यदि रस निकाला जाना कठिन हो तो कच्चे आलू को मुंह से चबाएं तथा रस पी जाएं और गूदे को थूक दें। आलू का रस पीने से हृदय की जलन दूर होकर तुरन्त ठंडक प्रतीत होती है।
*आलू का रस शहद के साथ पीने से हृदय की जलन मिटती है।"

14.गठिया या जोड़ों का दर्द:-गर्म राख में चार आलू सेंक ले और फिर उनका छिलका उतारकर नमक मिर्च डालकर नित्य खाएं। इस प्रयोग से गठिया ठीक हो जाती है।

15.आमवात:-पैंट, पाजामे या पतलून की दोनों जेबों में लगातार एक छोटा-सा आलू रखें तो यह प्रयोग आमवात से रक्षा करता है। आलू खाने से भी बहुत लाभ होता है।

16.कटि वेदना (कमर दर्द):-कच्चे आलू के गूदे को पीसकर पट्टी में लगाकर कमर पर बांधने से कमर दर्द दूर हो जाता है।

17.विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल):-यह एक ऐसा संक्रामक रोग है जिसमें सूजनयुक्त छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं, त्वचा लाल दिखाई देती है तथा साथ में बुखार भी रहता है। इस रोग में पीड़ित अंग पर आलू को पीसकर लगाने से फुन्सियां ठीक हो जाती हैं और लाभ होता है।

18.सब्ज मोतियाबिंद :-कच्चे आलू को ऊपर से छीलकर साफ पत्थर पर घिस लें और सलाई के सहारे आंखों में लगायें इससे आराम आता है।

19.पेट की गैस बनना:-कच्चे आलू को पीसकर उसका रस पीने से आराम मिलता है।
कच्चे आलू का रस आधा-आधा कप दो बार पीने से पेट की गैस में आराम मिलता है"

20.मुंह का सौंदर्य:-कच्चे आलू का रस निकालकर आंखों के काले घेरों पर लगाने से आंखों के नीचे की त्वचा का कालापन दूर हो जाता है।

21.चोट लगने पर:-चोट लगने पर उस स्थान पर नीले रंग का निशान पड़ जाता है। उस नीली पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगायें।

22.अम्लपित्त (एसिडिटिज़) होने पर:-भुने हुऐ आलू को खाने से अम्लता से पीड़ित रोगी को जल्दी आराम मिलता है क्योंकि आलू की प्रकृति क्षारीय है। इसमें पोटैशियम साल्ट (नमक) होता है जो अम्लता (एसिडिटी) को कम करता है। अम्लता (एसिडिटी) के रोगी को भोजन में रोजाना आलू खाकर अम्लता (एसिडिटी) को दूर कर सकते हैं।

23.शीशा खा लेने पर:-उबला हुआ आलू खा सकते हैं।

24.घाव (व्रण):-आलू को पत्थर पर पीसकर घाव पर लेप करने से जलने से हुए फफोले नहीं होते हैं और दर्द और जलन दूर होती है।
आलू को पीसकर घाव पर लगाने से घाव की जलन दूर हो जाती है।"

25.एलर्जी होने पर:-कच्चे आलू का रस जहां पर एलर्जी हो उस स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

26.बिवाई के फटने पर:-सूखे और फटे हुए हाथों को ठीक करने के लिए आलू को उबाल लें, फिर उसका छिलका हटाकर पीसकर उसमें जैतून का तेल मिलाकर हाथों पर लगायें तथा लगाने के 10 मिनट बाद हाथों को धोने से लाभ होता है।

27.चेहरे की झांई के लिए:-अगर चेहरे पर चेचक या मुंहासों के दाग या झांइयां हो तो कच्चे आलू को पीसकर 3-3 बूंद ग्लिसरीन, सिरका और गुलाब का रस मिलाकर फेस पैक बना लें। इसे रोजाना तीन मिनट तक चेहरे पर अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर लगाने से चेहरे के दाग और झांइयां बहुत ही जल्दी दूर हो जाती हैं।

28.पीलिया का रोग:-आलू या उसके पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पिलाने से पीलिया दूर हो जाता है।

29.दाद के रोग में:-कच्चे आलू का रस पीने से दाद ठीक हो जाता है।

30.हाथों की झुर्रियां:-कच्चे आलू के रस से मालिश करने से हाथों पर झुर्रियां (सिलवटें) नहीं पड़ती हैं।

31.जलने पर:-आलू को बारीक पीसकर शरीर में जले हुए भाग पर मोटा-मोटा सा लेप कर दें जिससे कि जले हुए भाग पर हवा न लगे। ऐसा करने से जलन मिट जाती है और आराम आ जाता है।

32.शारीरिक सौंदर्यता के लिए:-*आलू को पीसकर शरीर पर लेप करने से शरीर की त्वचा चमकदार हो जाती है। उबाले हुए आलू के पानी से शरीर को साफ करने से त्वचा सुन्दर और साफ हो जाती है।
*कच्चे आलू का छिलका हटाकर उसका रस निकालकर चेहरे पर मलें या कपड़े पर लगाकर चेहरे पर रातभर लगा रहने दें। सवेरे उठने पर चेहरा साफ कर लें। चेहरे का रंग गोरा हो जायेगा।"

33.सिर का दर्द:-सिर के दर्द में आलू के बीज खाने से आराम मिलता है।

34.शरीर में सूजन:-*आलू को पानी में उबालकर आलू को पानी से अलग करके इसके पानी से सूजन वाले भाग या अंग की सिकाई करने से सूजन दूर हो जाती है।
*500 ग्राम जल में 250 ग्राम कच्चे आलू को उबालकर सूजन वाले अंग को सेंककर आलू का लेपकर देने से चोट के कारण होने वाली सूजन दूर हो जाती है।"

कमर दर्द के लिए घरेलू उपाय


कमर दर्द के लिए घरेलू उपाय - कमर दर्द- यह समस्या आजकल आम हो गई है। सिर्फ बड़ी उम्र के लोग ही नहीं बल्कि युवा भी कमर दर्द की शिकायत करते रहते हैं। कमर दर्द की मुख्य वजह बेतरतीब जीवनशैली और शारीरिक श्रम न करना है।

अधिकतर लोगों को कमर के मध्य या निचले भाग में दर्द महसूस होता है। यह दर्द कमर के दोनों और तथा कूल्हों तक भी फ़ैल सकता है। बढ़ती उम्र के साथ कमर दर्द की समस्या बढ़ती जाती है। नतीजा काम करने में परेशानी । कुछ आदतों को बदलकर इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। आज हम आप को बताते हैं कि किन घरेलू नुस्खों को अपनाकर आप कमर दर्द से निजात पा सकते हैं।

कमर दर्द के कारण-

मांसपेशियों पर अत्यधिक तनाव।
अधिक वजन।
गलत तरीके से बैठना।
हमेशा ऊंची एड़ी के जूते या सेंडिल पहनना।
गलत तरीके से अधिक वजन उठाना।
शरीर में लम्बे समय से बीमारियों का होना।
अधिक नर्म गद्दों पर सोना।


कमर दर्द से बचने के घरेलू उपाय ---

1. रोज सुबह सरसों या नारियल के तेल में लहसुन की तीन-चार कलियॉ डालकर (जब तक लहसुन की कलियां काली न हो जायें) गर्म कर लें। ठंडा होने पर इस तेल से कमर की मालिश करें।

2. नमक मिले गरम पानी में एक तौलिया डालकर निचोड़ लें। इसके बाद पेट के बल लेट जाएं। दर्द के स्थान पर तौलिये से भाप लें। कमर दर्द से राहत पहुंचाने का यह एक अचूक उपाय है।

3. कढ़ाई में दो-तीन चम्मच नमक डालकर इसे अच्छे से सेक लें। इस नमक को थोड़े मोटे सूती कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। कमर पर इस पोटली से सेक करने से भी दर्द से आराम मिलता है।

4. अजवाइन को तवे के पर थोड़ी धीमी आंच पर सेंक लें। ठंडा होने पर धीरे-धीरे चबाते हुए निगल जाएं। इसके नियमित सेवन से कमर दर्द में लाभ मिलता है।

5. अधिक देर तक एक ही पोजीशन में बैठकर काम न करें। हर चालीस मिनट में अपनी कुर्सी से उठकर थोड़ी देर टहल लें।

6. नर्म गद्देदार सीटों से परहेज करना चाहिए। कमर दर्द के रोगियों को थोड़ा सख्ते बिस्तर बिछाकर सोना चाहिए।

7. योग भी कमर दर्द में लाभ पहुंचाता है। भुन्ज्गासन, शलभासन, हलासन, उत्तानपादासन, श्वसन आदि कुछ ऐसे योगासन हैं जो की कमर दर्द में काफी लाभ पहुंचाते हैं। कमर दर्द के योगासनों को योगगुरु की देख रेख में ही करने चाहिए।

8. कैल्शियम की कम मात्रा से भी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, इसलिए कैल्शियमयुक्त चीजों का सेवन करें।

9. कमर दर्द के लिए व्यायाम भी करना चाहिए। सैर करना, तैरना या साइकिल चलाना सुरक्षित व्यायाम हैं। तैराकी जहां वजन तो कम करती है, वहीं यह कमर के लिए भी लाभकारी है। साइकिल चलाते समय कमर सीधी रखनी चाहिए। व्यायाम करने से मांसपेशियों को ताकत मिलेगी तथा वजन भी नहीं बढ़ेगा।

10. कमर दर्द में भारी वजन उठाते समय या जमीन से किसी भी चीज को उठाते समय कमर के बल ना झुकें बल्कि पहले घुटने मोड़कर नीचे झुकें और जब हाथ नीचे वस्तु तक पहुंच जाए तो उसे उठाकर घुटने को सीधा करते हुए खड़े हो जाएं।

11. कार चलाते वक्त सीट सख्त होनी चाहिए, बैठने का पोश्चर भी सही रखें और कार ड्राइव करते समय सीट बेल्ट टाइट कर लें।
12. ऑफिस में काम करते समय कभी भी पीठ के सहारे न बैठें। अपनी पीठ को कुर्सी पर इस तरह टिकाएं कि यह हमेशा सीधी रहे। गर्दन को सीधा रखने के लिए कुर्सी में पीछे की ओर मोटा तौलिया मोड़ कर लगाया जा सकता है।

इन सब उपायों को अपना कर आप भी कमर दर्द से कुछ निजात पा सकते है।

ऐसे करें धनिये का USE,गर्मियों की ये बड़ी हेल्थ प्रॉब्लम्स खत्म हो जाएंगी

ऐसे करें धनिये का USE,गर्मियों की ये बड़ी हेल्थ प्रॉब्लम्स खत्म हो जाएंगी

पौधों और मनुष्य जीवन के अटूट संबंध को आदिकाल से लेकर आधुनिक विज्ञान के दौर तक हर किसी ने माना है और पौधों के औषधीय गुणों का बखान प्राचीन ग्रंथों से लेकर आयुर्वैद और अंतत: आधुनिक विज्ञान भी करता रहा है। ये बात अलग है कि जिन पौधों के औषधीय गुणों को हमने परखा नहीं या सुना नहीं, बहुत हद तक हम ऐसे पौधों को नकार जाते हैं, धनिया भी कुछ इस तरह का पौधा है जिसे आमतौर पर हम सब्जियों और तमाम व्यंजनों में डाले जाने वाले मसाले के तौर पर ही जानते हैं लेकिन यदि इसके औषधीय गुणों को आप जानेंगे तो आश्चर्यचकित हुए बगैर नहीं रह पाएंगे।

धनिया और उससे संबंधित आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान और कुछ रोचक जानकारियों का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित करने का काम कर रहे हैं....

आमतौर पर सब्जियों में मसाले और सुगंध के लिए इस्तेमाल होने वाले धनिया की खेती भारत के हर हिस्से में होती है। औषधीय गुणों से भरपूर धनिये का वानस्पतिक नाम कोरिएंड्रम सटाईवम है।

नकसीर की है अचूक दवा

20 ग्राम हरी ताजी धनिया की पत्तियाँ लीजिए और इसमें चुटकी भर कर्पूर डालकर सिलबट्टे पर कुचल लें, प्राप्त रस की 2-2 बूंदें नाक के दोनो छिद्रों में प्रतिदिन दिन में 2 बार डालें, साथ ही इस रस का लेप प्रतिदिन माथे पर 5 मिनट के लिए लगाए, सिर्फ 15 दिन आजमाकर देखिए, इससे नकसीर की समस्या खत्म हो जाती है।

त्वचा के लिए गर्मियों में होता है फायदेमंद

धनिया त्वचा के लिए भी फायदेमंद है। धनिये की पत्तियों के रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर चेहरे पर लगाएं, इससे मुहाँसों की समस्या दूर होती है और यह ब्लैकहेड्स को भी हटाता है।

आंखों को रखता है हेल्दी

थोड़ा सा धनिया कूट कर पानी में उबाल कर ठंडा कर के, किसी साफ सूती कपड़े से छान कर शीशी में भर लें और इसकी दो बूँदे आँखों में टपकाने से आँखों में जलन, दर्द तथा पानी गिरना जैसी समस्याएँ दूर होती हैं।

मासिक धर्म की समस्याओं को करता है दूर


धनिया महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी समस्याओं को दूर करता है। यदि मासिक धर्म साधारण से ज्यादा हो तो आधा लीटर पानी में लगभग 6 ग्राम धनिए के बीज डालकर उबाले और इसमें शक्कर डालकर पीएं, फायदा होगा।

डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभदायक

धनिये को मधुमेह नाशी भी माना जाता है। इसके सेवन से खून में इंसुलिन की मात्रा नियंत्रित रहती है। सौंफ, मिश्री व धनिया के बीजों की समान मात्रा लेकर चूर्ण बना कर 6-6 ग्राम प्रतिदिन भोजन के बाद खाने से हाथ पैर की जलन, एसिडिटी, आँखों की जलन, पेशाब में जलन व सिरदर्द दूर होता है।

किडनी की प्रॉब्लम्स दूर कर देता है

धनिया के बारे में नवीन शोध बताते हैं कि धनिया की पत्ती खाने से किडनी स्वस्थ रहती है। किडनी की समस्याओं से ग्रसित लोगों को ये देसी आदिवासी नुस्खा एक बार अजमाकर देखना जरूर चाहिए। अजमोद (सेलेरी) और धनिया की ताजी हरी पत्तियाँ (दोनो 500 ग्राम) लीजिए, साफ पानी से धोकर, बारीक काट लें और 3 लीटर पानी के साथ उबालें जब तक कि यह आधा शेष ना बचे। ठंडा होने के बाद इसे छानकर किसी बोतल में लेकर रेफ्ऱिजरेटर में रख दें, प्रतिदिन सुबह लगभग एक गिलास इस रस का सेवन कीजिए और वो भी सिफऱ् 10 दिनों तक, फर्क दिखेगा जरूर, हिन्दुस्तानी आदिवासियों का देसी ज्ञान है, आजमाइए जरूर, इसे स्वस्थ व्यक्ति को भी अपनाना चाहिए।

गर्मियों में पसीने की कर देगा छुट्टी

एक तिहाई कप सिरका (एसिटिक एसिड) और पानी लिया जाए और इसे उबाला जाए। एक अलग बर्तन में 3 लौंग, थोडी ताजी धनिया पत्तियाँ, थोडी पुदिना पत्तियाँ, नीलगिरी की 4 ताजी पत्तियाँ और लगभग 1 ग्राम दालचीनी की छाल डाली जाए। खौले हुए पानी को इस मिश्रण वाले बर्तन में डाल दिया जाए और पुन: इस मिश्रण हल्की हल्की आँच पर 20 मिनिट तक गर्म किया जाए, बाद में इसे छानकर काँच के किसी बर्तन में छान लिया जाए और रेफ्रिजरेट कर लें। प्रतिदिन नहाने के बाद थोडी मात्रा हथेली में लेकर ज्यादा पसीना आने वाले शारीरिक अंगों पर लगाएं। यह गर्मियों में शरीर पर पसीना आना रोकेगा और बदबू भी दूर करेगा, आजमाकर देखिए।

आयुर्वेद से एसीडिटी का इलाज

आयुर्वेद से एसीडिटी का इलाज ::

• आंवला चूर्ण को एक महत्वपूर्ण औषधि के रूप में
इस्तेमाल किया जाता है।
आपको एसीडिटी की शिकायत होने पर सुबह- शाम
आंवले का चूर्ण लेना चाहिए।

• अदरक के सेवन से एसीडिटी से निजात मिल
सकती हैं, इसके लिए आपको अदरक को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर गर्म पानी में उबालना चाहिए और फिर
उसका पानी अदरक की चाय भी ले सकते हैं।

• मुलैठी का चूर्ण या फिर
इसका काढ़ा भी आपको एसीडिटी से निजात
दिलाएगा इतना ही नहीं गले की जलन भी इस काढ़े से
ठीक हो सकती है।

• नीम की छाल को पीसकर उसका चूर्ण बनाकर पानी से
लेने से एसीडिटी से निजात मिलती है।
इतना ही नहीं यदि आप चूर्ण का सेवन नहीं करना चाहते
तो रात को पानी में नीम की छाल भिगो दें और सुबह
इसका पानी पीएं आपको इससे निजात मिलेगी।

• मुनक्का या गुलकंद के सेवन से भी एसीडिटी से निजात पा सकते हैं, इसके लिए आप मुनक्का को दूध में उबालकर ले
सकते हैं या फिर आप गुलकंद के बजाय मुनक्का भी दूध के
साथ ले सकते हैं।

• त्रिफला चूर्ण के सेवन से आपको एसीडिटी से
छुटकारा मिलेगा, इसके लिए आपको चाहिए कि आप
पानी के साथ त्रिफला चूर्ण लें या फिर आप दूध के साथ भी त्रिफला ले सकते हैं।
हरड: यह पेट की एसिडिटी और सीने की जलन
को ठीक करता है ।

• लहसुन: पेट की सभी बीमारियों के उपचार के लिए
लहसून रामबाण का काम करता है।

• मेथी: मेथी के पत्ते पेट की जलन दिस्पेप्सिया के उपचार में सहायक सिद्ध होते हैं।

• सौंफ:सौंफ भी पेट की जलन को ठीक करने में सहायक
सिद्ध होती है। यह एक तरह की सौम्य रेचक होती है
और शिशुओं और बच्चों की पाचन और एसिडिटी से
जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए भी मदद करती है।

• दूध के नियमित सेवन से आप एसीडिटी से निजात
पा सकते हैं, इसके साथ ही आपको चाहिए कि आप
चौलाई, करेला, धनिया, अनार,
केला इत्यादि फलों का सेवन नियमित रूप से करें।

• शंख भस्म, सूतशेखर रस, कामदुधा रस, धात्री लौह,
प्रवाल पिष्टी इत्यादि औषधियों को मिलाकर आपको भोजन के बाद पानी के साथ लेना चाहिए।

• इसके अलावा आप अश्वगंधा, बबूना , चन्दन, चिरायता,
इलायची, अहरड, लहसुन, मेथी, सौंफ इत्यादि के सेवन से
भी एसीडिटी की समस्या से निजात पा सकते हैं। एसीडिटी दूर करने के

अन्य उपाय
• अधिक मात्रा में पानी पीना
• पपीता खाएं
• दही और ककड़ी खाएं
• गाजर, पत्तागोभी, बथुआ,
लौकी इत्यातदि को मिक्सत करके जूस लें।
• पानी में नींबू और मिश्री मिलाकर दोपहर के खाने से
पहले लें।
• तनावमुक्त रहें और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।
• नियमित रूप से व्यायाम करें।
• दोपहर और रात के खाने के बीच सही अंतराल रखें।
• नियमित रूप से पुदीने के रस का सेवन करें ।
• तुलसी के पत्ते एसिडिटी और मतली से काफी हद तक
राहत दिलाते हैं।
• नारियल पानी का सेवन अधिक करें।

एसीडिटी के कारण
• नियमित रूप से चटपटा मसालेदार और जंकफूड
का सेवन
• अधिक एल्कोहल और नशीले पदार्थों का सेवन
• लंबे समय तक दवाईयों का सेवन
• शरीर में गर्मी बढ़-बढ़ जाना
• बहुत देर रात भोजन करना
• भोजन के बाद भी कुछ न कुछ खाना या लंबे समय तक भूखे
रहकर एकदम बहुत सारा खाना खाना एसीडिटी के लक्षण
• एसीडिटी के तुरंत बाद पेट में जलन होने लगती है।
• कड़वी और खट्टी डकारें आना
• लगातार गैस बनना और सिर दर्द की शिकायत
• उल्टी होने का अहसास और खाने का बाहर आने
का अहसास होना
• थकान और भारीपन महसूस होना

ना "fair n lovely" ना "fair n handsome"

ना "fair n lovely" ना "fair n handsome"

अगर आपको सच में गोरा होना है
तो प्रकृति से जुड़िये जिससे आप सच में
गोरे हो जाओगे।

1)हल्दी एक ऐसी ओषधि है
जो कि त्वचा के रंग को निखारने में
बहुत मदद करती है। मैं आपको एक घरेलु
face pack बताता हूँ जिससे
आपका रंग कुछ ही दिनों में निखर
उठेगा। थोडा सा बेसन लें उसमें
थोड़ी सी हल्दी मिलाएं और उसमें
इतना दूध मिलाये की एक पेस्ट बन
जाए इसके बाद 15 मिनट इसे सूखने दें।
उसके बाद हलके गरम पानी से चेहरे
को थोडा गीला करके
हल्का सा scrub की लरह धीरे धीरे
पूरे चेहरे पर मसल लें और फिर
चेहरा धो लें। आपको पहले दिन से
ही फ़र्क पता चलने लगेगा आपके चेहरे
का रंग साफ़ होने लगेगा और कुछ
ही दिनों में
आपको मिलेगा गोरी त्वचा।

2) अगर आप दाग धब्बो से परेशान है
तो रोज उन पर कच्चा आलू काट कर
मसले सब साफ़ हो जायेंगेह

3) अगर आप मुहांसो से परेशान है
तो अपने चेहरे पर ग्वार(aloevera)
की जैल लगाए, आप अपने घर में ग्वार
को आसानी से लगा सकते है और उसे
छील कर गुद्दे का प्रयोग कर सकते है
या फ़िर बाजार से भी जैल ले सकते है

4) अगर हाथ, पैर की त्वचा का रंग
एक सा न हो या त्वचा धूप में जल
गयी हो तो आटे को छान कर उसमें से
चोकर निकालकर चोकर में हल्दी व
मलाई डाल कर उसे मिला ले .
मिलाकर हाथ व पैर मैं लगा कर हल्के
हाथों से मलकर हटा ले. धूप से
जली त्वचा साफ़ हो जाएगी और
त्वचा में चमक भी आएगी.
पूरे शरीर की त्वचा के लिए
चिरोंजी दाने में दूध डालकर उसे रात
भर भीगने दे फिर सुबह पीस कर इसमें
देसी गुलाब और गेंदे के
फूलों की पत्तियों को मिलाकर उबटन
बना ले, फिर उसे लगाये . शरीर
की त्वचा कांतिमय हो जाएगी और
उसके छिद्रों की सफाई भी अच्छे से
हो जाएगी .

अरे ये क्या अकेले अकेले पढ़ के कहा जा रहे हो share करके मित्रो को भी बतादो ।

आयुर्वेद का मजाक बनाती कुछ पोस्ट


आयुर्वेद का मजाक बनाती कुछ पोस्ट -
फेसबुक पर बहुत सी जानकारी घूम रही है.
लोग बिना विचारे शेयर / पेस्ट कर रहे हैं.
1- दूध में गुड मिलाकर पीना चाहिए
सत्य- आयुर्वेद में दूध व् गुड विरुद्ध भोजन है. वैसे भी दूध में गुड डालने पर दूध फट जाता है.
2- अनार में फाइबर है/ अनार कैंसर ठीक करता है-
सत्य - अनार में फाइबर बेहद कम है. कैंसर पर अनार का प्रभाव किसी विज्ञान या आयुर्वेद में नहीं बताया गया है.
3 - खून की कमी में तिल खाना चाहिए-
सत्य - आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थ चरक संहिता में पांडू रोग (Anemia ) में तिल का निषेध किया है.
4- पालक में आयरन बहुत अधिक होता है इसलिए पालक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है- .
सत्य-
पालक में आयरन बहुत कम होता है. आयुर्वेद में भी पालक को गुणकारी नहीं माना गया है. पालक अधिक खाना पत्थरी पैदा करता है.5- मूंगफली खाना सर्दी में अच्छा है
सत्य-
मुंगफली भूख कम करती है, पाचन शक्ति खराब करती है.
6- सरसों के पत्तो का साग स्वास्थ्य के लिए अच्छा है-
सत्य - आयुर्वेद के सभी ग्रन्थ एक स्वर में कहते हैं कि पत्ते वाले शाकों (सागों) में सरसों सबसे खराब शाक है. त्रिदोष कारक है. रोग उत्पन्न करता है.
आयुर्वेद के अनुसार जीवन्ती (डोडी) व् बथुआ सबसे अच्छे पत्ते वाले शाक है.
केवल आँख बंद कर के कोई बात स्वीकार ना करें

स्वस्थ्य रहने के 7000 सूत्र लिखे

आयुर्वेदिक औषधियां
आयुर्वेदिक औषधियां जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों के द्वारा बनाई जाती है। इन औषधियों का प्रयोग करने से रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है। इन औषधियों के प्रयोग के साथ ही कुछ परहेज और सावधानियों को भी अपनाना चाहिए तभी रोग पूर्णरूप से ठीक हो सकता है।

नीम के पेड़

नीम के पेड़

एक आदमी एक दिन मे इतना ऑक्सीजन लेता है जीतने मे 3 ऑक्सीजन सिलेन्डर भरे जा सकते हैं । एक ऑक्सीजन सिलेन्डर की कीमत 700 रूपेय है इस तरह एक आदमी एक दिन मे 2100 (700 x 3) का ऑक्सीजन लेता है और एक साल मे 766500, और अपने पूरे जीवन कल मे लगभग 5 करोड़ रूपेय का ऑक्सीजन लेता है जो की पेड़ पौधे द्वारा हमे फ्री मे मिलता है , और हम उनही पेड़ पौधो की समाप्त कर रहे है।
नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
•चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है।
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें।
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।

Image may contain: plant, drink, outdoor and nature कैलाशचंद्र लढा "साँवरिया"
भीलवाड़ा, राजस्थान

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